गृह मंत्रालय की छापेमारी और केंद्र के प्रतिबन्ध के बाद PFI एक बार फिर से ख़बरों का हिस्सा बन हुआ है। खबरे आ रही है कि NIA ने दिल्ली समेत 8 राज्यों में PFI के ठिकानों पर रेड की है और इसमें 100 से अधिक लोगो को हिरासत में ले लिया है। न्यूज़ एजेंसी पीएफआई में बताया – छापेमारी की यह कार्यवाही आतंकी फंडिंग, आतंकी कैम्प बनाने, लोगो में चरमपंथ फैलाने के लिए की गयी है।
NIA ने कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में PFI के 10 ठिकानों सहित प्रदेश के विभिन्न भागों में छापेमारी की कार्यवाही की है। PFI राज्य अध्यक्ष नजीर पाशा के घर पर भी रेड की गयी है। PFI बयानों के माध्यम से अपने राष्ट्रीय, राज्य एवं लोकल नेताओं के घरों पर छापेमारी की पुष्टि की है।
PFI क्या है?
PFI यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की स्थापना 17 फरवरी 2007 के हुई थी। इसको दक्षिण भारत के 3 मुस्लिम संगठनों को मिलाकर बनाया गया था। यह तीन संघठन थे – नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई। PFI देश के 23 राज्यों में अपने संघठन की सक्रियता का दावा करता है। देश में सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट) पर प्रतिबंध लगने के बाद PFI को तेजी से विस्तार मिला है।
देश के दक्षिणी राज्य केरल, कर्नाटक जैसी प्रदेशों में संघठन की अच्छी पकड़ है। इसकी देशभर में बहुत सी शाखाएँ है और इन पर देश और समाज विरोधी कार्य को करने के आरोप लगते रहे है।
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PFI क्या काम करता है?
सिमी के प्रतिबंधित हो जाने के बाद PFI ने खुद को ऐसे संघठन की तरह स्थापित किया जो देश में अल्पसंख्यक, दलित और वंचित समुदाय के हक़ के लिए संघर्ष करता है। यह कर्नाटक में कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस आदि पार्टियों की तथाकथित जनविरोधी नीतियों के कारण निशाने पर लेता रहा है।
पीएफआई में खुद कभी भी चुनाव में भागीदारी नहीं की लेकिन विभिन्न मुख्यधारा की पार्टियाँ एक दूसरे पर मुस्लिम समर्थन पाने के लिए PFI से मिले होने के आरोप लगाती रही है।
जिस प्रकार से RSS, VHP और हिन्दू जागरण वैदिक जैसे हिन्दू संगठनों ने हिन्दू समुदायों के लिए काम किया है। इसी प्रकार से PFI ने भी मुस्लिम जनता में सामाजिक एवं इस्लामी धार्मिक कार्यों को अंजाम दिया है।
पीएफआई से SDPI निकला
साल 2009 में SDPI (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इन्डिया) नाम का एक राजनितिक दल PFI से ही निकला था। इस पार्टी का लक्ष्य मुस्लिमो, दलितों एवं अन्य वंचित समुदायों के लोगों के राजनितिक मुद्दों को उठाना था।
SDPI के अनुसार – “उसका टारगेट मुसलमान, दलित, पिछड़े और आदिवासी नागरिकों का विकास करना है। इसके साथ ही सभी नागरिकों के बीच उचित रूप से सत्ता साझा करना है।”
संघठन क्यों बदनाम है?
पीएफआई एक चरणमपंथी संघटन की छवि रखता है। साल 2017 में NIA ने गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखकर PFI को प्रतिबंधित करने की मांग की थी। NIA ने अपनी इन्वेस्टीगेशन में इस संगठन को हिंसक एवं टेरर एक्टिविटी में संलिप्त पाया था। एनआईए के डोजियर में PFI को देश की सुरक्षा में खतरा बताया गया है।