पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के युग के शुरू होते ही भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं ‘पितामह’ लालकृष्ण आडवाणी धूमिल होते चले गए थे। और वे मोदी के पीएम बनाने की उम्मीदवारी के भी समर्थक नहीं थे। साल 2014 में मोदी की अगुवाई में ही भाजपा ने पहली दफा पूर्ण बहुमत की सत्ता को प्राप्त किया था।
नब्बे के दशक में मोदी बीजेपी के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) से नजदीकी रखते थे। लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जाने वाले आडवाणी ही मोदी के कुछ फैसलों से भाजपा में हाशिये पर आ गए।
हालाँकि मोदी के गुजरात विधानसभा चुनाव 2012 में जीत पाने के बाद से ही राष्ट्रीय राजनीति में आने की बाते होने लगी थी। साल 2012 से 2013 के बीच मोदी ने गुजरात के बाहर बहुत सी रैलियाँ की थी।
लेकिन उस समय जनता के मन में यही प्रश्न आ रहा था कि बीजेपी की जीत के बाद प्रधानमंत्री कौन बनने जा रहा है। भाजपा का रूप मोदी को पीएम बनाने को लेकर स्पष्ट था लेकिन पार्टी का आडवाणी गुट इससे राजी नहीं था।
- आडवाणी और मोदी के संबंधों में कई उतार चढ़ाव आये है।
- आडवाणी ने साल 2003 में मोदी को मुख्यमंत्री से हटाने से बचाया था।
- साल 2013 में आडवाणी ने मोदी की पीएम उम्मीदवारी का विरोध किया था।
- इन बातों का असर दोनों गुरु-शिष्यों पर 2017 में दिखाई देने लगा
मोदी ने आडवाणी को पीछे छोड़ा
साल 2013 तक आडवाणी यह मानते थे कि भाजपा उनको अधिक महत्त्व देगी। इसके विपरीत जून 2013 में मोदी को भाजपा की प्रचार समिति का प्रेजिडेंट बना दिया गया।
इसके बाद 13 सितम्बर 2013 के दिन मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने पर मुहर लग गयी। इस समय की संसदीय दाल की मीटिंग में भाजपा के सभी शीर्ष नेता के होने पर भी आडवाणी मौजूद नहीं थे।
लोकप्रियता के कारण कमान मिली
उस समय के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की घोषणा की थी। लेकिन ख़ास बात यह थी कि राजनाथ सिंह और दोनों स्वर्गीय नेता सुषमा स्वराज, अरुण जेटली भी आडवाणी ग्रुप का हिस्सा थे।
इसके बावजूद भी पार्टी के नेता और अध्यक्ष राजनाथ सिंह यही मान रहे थे कि मोदी को उनकी लोकप्रियता ही जीत दिला देगी। इस समय में आडवाणी ग्रुप के नेताओं ने मोदी का साथ छोड़ा था।
आडवाणी ग्रुप ने किनारा कर लिया था
साल 2014 के लोक सभा चुनावों में लालकृष्ण आडवाणी को गाँधीनगर की परंपरागत सीट से चुनाव लड़ाया गया। इस चुनाव में आडवाणी ने पार्टी को निराश नहीं किया और जीत दर्ज कर ली।
इसके बाद साल 2019 में तो भाजपा में उनको चुनाव तक में नहीं उतारा। खबरो की माने तो वे साल 2019 का चुनाव भी लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके थे लेकिन पार्टी ने उनकी इस मांग को दरकिनार कर दिया।