आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको Premanand Ji Maharaj के बारे में पूरी जानकारी डिटेल में बताने जा रहें हैं। जानकारी के लिए बता दें प्रेमानंद जी एक सन्यासी है। प्रेमानंद जी महाराज आजकल चर्चा में बने हुए हैं और उनके विचार और कथन भी काफी वायरल हो रहें हैं। यहाँ आप जानेंगे इनका असली नाम क्या है और ये सन्यासी कैसे बनें ? तो चलिए जानते है इनके बारे में –
कौन हैं Premanand Ji Maharaj?
आपकी जानकारी के लिए बता दें प्रेमानंद जी महाराज एक सन्यासी महात्मा हैं। इनका जन्म यूपी राज्य के कानपुर जिले में हुआ था। 13 साल की अल्पायु में ही इन्होंने ग्रह त्याग कर दिया था। पहले ये भगवान शिव के उपासक थे लेकिन बाद में भगवान् श्री कृष्ण और राधारानी की आराधना करने लगे। प्रेमानंद जी को भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के उपासक के रूप में जाना जाता हैं। ये वृन्दावन में ही रहते हैं और भगवान श्री कृष्ण और राधारानी के भजन-कीर्तन में लगे रहते हैं। इनका भजन-कीर्तन सुनने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।
जानकारी के लिए बता दें महाराज प्रेमानंद जी की दोनों किडनी फेल हैं लेकिन उनका कहना है कि प्रभु का नाम और प्रभु के चरणों में ध्यान लगाए कितना भी कष्ट हो आपको कुछ नहीं हो सकता, और आप बड़े से बड़े भयानक कष्ट में भी आप आनंदित रहेंगे।
जानें क्या है प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम
जानकारी के लिए बता दें प्रेमानंद जी महाराज के बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है। ये ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। प्रेमानंद जी महाराज के परिवार का वातावरण भक्ति भाव से परिपूर्ण था जिसका प्रभाव इन पर भी पड़ा और ये भी भक्ति की ओर अग्रसर हुए।
इनके पिता जी का नाम श्रीमान शम्भू पांडे और माता का नाम रामा देवी है। इनके एक बड़े भाई भी है। वे भी भक्तिभाव से परिपूर्ण हैं और भगवत गीता का पाठ करते हैं।
कैसे बनें सन्यासी
प्रेमानंद जी महाराज ने मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में ही घर को त्यागकर भक्ति का रास्ता अपना लिया और वे सन्यासी बन गए। भक्ति का प्रभाव तो इन पर बचपन से ही था क्योंकि पहले इसके दादा जी ने सभी सन्यास ग्रहण कर लिया था। प्रेमानंद जी के पिता जी भगवान शिव के उपासक थे और इनके बड़े भाई भागवत गीता का पाठ किया करते थे।
महाराज प्रेमानंद जी को भगवान शिव ने साक्षात दर्शन दिए थे जिसके बाद उन्होंने भगवान शिव की आराधना करना शुरू कर दिया और घर को त्यागकर भक्ति मार्ग चुना और सन्यासी बन गए।
सन्यासी बनने के बाद प्रेमानंद जी वाराणसी पहुंचे। उसके बाद इन्होंने वहां पर समय बिताया। ये हर रोज गंगा नदी में तीन बार स्नान किया करते थे और साथ गंगा नदी के तट पर ही भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान और उपासना करते थे।
अपने सन्यासी जीवन में उन्होंने कई-कई दिन भूखे रहकर बिताया है। जहाँ पर प्रेमानंद जी महाराज भिक्षा मांगने के लिए बैठा करते थे वहां पर वे भोजन करने की इच्छा से केवल 10-15 मिनट की बैठा करते थे अगर इतने समय के बीच उन्हें खाना मिल जाता था तो वे भोजन करते थे नहीं तो केवल गंगाजल पीकर ही रह जाते थे।
कैसे पहुंचे प्रेमानंद जी वृन्दावन
प्रेमानंद जी का वृन्दावन आना किसी चमत्कारी कहानी से कम नहीं है। एक दिन की बात है प्रेमानंद जी से मिलने के लिए एक अपरिचित साधु आये। उन्होंने प्रेमानंद जी महाराज से कहा श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्रीराम शर्मा के द्वारा दिन में श्री चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला मंच का आयोजन किया जा रहा है। मैं आपको आमंत्रित करने के लिए आया हुआ और आपको वहां आना होगा। साधु के आमंत्रण देने के बाद महाराज जी ने आने से मना कर दिया लेकिन साधु के अधिक जोर देने पर महाराज जी ने जाने के लिए हाँ कह दिया।
चैतन्य लीला और रासलीला का आयोजन एक महीने तक चला और प्रेमानंद जी महाराज को यह आयोजन काफी पसंद आया। हालांकि पहले महाराज जी इस आयोजन में आने से मना कर रहें थे लेकिन जब वे इस आयोजन में शामिल हुए उन्हें बहुत आनंद आया। आयोजन समाप्त होने के बाद प्रेमानंद जी महाराज वापस आ गए। वहां से आने के बाद महाराज जी को रासलीला देखने की लालसा होने लगी। उन्होंने उस साधु से कहा मुझे रासलीला देखने का अवसर कब मिलेगा। साधु ने कहा आप वृन्दावन आ जाइए वहां आपको प्रतिदिन रासलीला देखने का अवसर प्राप्त होगा।
इतना सुनकर प्रेमानंद जी प्रसन्न हो गए और वृन्दावन पहुँच गए। उसके बाद उन्होंने वही पर रहकर राधारानी और श्री कृष्ण की उपासना शुरू कर दी और भजन कीर्तन करने लगे।
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