NOTA Full Form: देश में जब भी चुनाव आते है तो एक ही पद को जीतने के लिए बहुत सारी पार्टियों के उम्मीदवार चुनाव लड़ते है और एक-दूसरे को हराने का प्रयास करते है। चुनाव को जीतने के लिए नागरिकों को लाभ देने का प्रयास करते है। कई मतदाता ऐसे होते है जो किसी भी पार्टी का समर्थन नहीं करते है वो किसी को भी वोट नहीं देना चाहते है उनके लिए चुनाव आयोग द्वारा एक विशेष अधिकार प्रदान किया गया है इस अधिकार के माध्यम से जो व्यक्ति किसी भी अन्य व्यक्ति उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहता वो नोटा विकल्प का प्रयोग कर सकता है। आज हम आपको इस आर्टिकल में NOTA Full Form क्या है? नोटा (Nota) क्या है? नोटा का इतिहास क्या है? आदि से सम्बंधित प्रत्येक जानकारी को साझा करने वाले है, इसलिए इस आर्टिकल के लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
नोटा (Nota) क्या है?
चुनाव में यदि कोई व्यक्ति किसी भी उम्मीदवार से संतुष्ट नहीं है वह उस व्यक्ति के कार्य को सही नहीं मानता है अथवा वह उस पद के लिए अर्थात चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार में से किसी भी व्यक्ति को योग्य नहीं समझता है और वह उन्हें वोट नहीं करना चाहता है तो वह नोटा का इस्तेमाल कर सकता है। सरल भाषा में कहें नोटा बटन को तब दबाया जाता है जब आप किसी भी व्यक्ति को वोट नहीं देना चाहते है। चुनाव होने के बाद अन्य वोटों की काउंटिंग करने के साथ नोटा में दिए गए मतों की भी काउंटिंग की जाती है अर्थात नोटा में दिए गए विकल्पों को भी महत्व दिया जाता है। इससे पता चलता है कितने व्यक्ति चुवान लड़ने वाले उम्मीदवारों को वोट नहीं देना चाहते है।
NOTA का Full Form क्या है?
None of the Above नोटा का Full Form है, इसे हिंदी में “इनमें से कोई भी नहीं” कहा जाता है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इसका चिन्ह दिया हुआ होता है।
नोटा का इतिहास
चुनाव में नोटा ऑप्शन का इस्तेमाल सर्वप्रथम वर्ष 1976 सयुंक्त राज्य अमेरिका में किया गया था। यह चुनाव सयुंक्त राज्य अमेरिका सांता बारबरा, केलिफोर्निया के काउंटी में किया गया था। केलिफोर्निया के नेवादा राज्य में किसी भी उम्मीदवार को वोट ना देने के लिए सर्वप्रथम nota विकल्प (उपर्युक्त में से कोई नहीं) के ऑप्शन को जारी किया गया था। और भारत में evm मशीन में नोटा के विकल्प को शामिल करने के लिए वर्ष 2009 में निर्वाचन आयोग द्वारा सर्वोच्च न्यायलय में प्रार्थना स्वीकृत की गई थी। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल Liberti जो कि एक गैर क़ानूनी संगठन है उसके द्वारा नोटा के पक्ष में याचिका दर्ज की गई थी। 27 सितम्बर 2013 में सुप्रीम कोट द्वारा नोटा वोट विकल्प को शुरू करने का अधिकार लागू किया गया था।
भारत में पहली बार नोटा का प्रयोग
जब मतदाता किसी भी उम्मीदवार को योग्य नहीं मानता और वह किसी को भी वोट नहीं देना चाहता तो यह जानकर सरकार द्वारा वर्ष 2013 दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा पहली बार EVM मशीन को जिसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन कहते है अर्थात इनमें से कोई नहीं (none of the above) NOTA विकल्प को मौजूद किया गया था। आपको बता दे नोटा विकल्प में जितने भी वोट जाते है उनका भी आकलन किया जाता है कि कितने लोगों ने नोटों को मत दिए है। नोटा का प्रयोग तब होता है जब मतदाता किसी भी उम्मीदवार के कार्य से संतुष्ट नहीं है या फिर वह उस पद के लिए उसे उचित नहीं समझता अथवा उसे कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है आदि स्थिति में इसका इस्तेमाल होता है। पहले इस व्यवस्था को जारी नहीं किया गया था उस समय में व्यक्ति द्वारा किसी भी उम्म्मीद्वार को योग्य न मानने की स्थिति में वोट नहीं दिया जाता था वे अपना वोट ना देने का प्रतिरोध करते थे।
नोटा का चिन्ह कैसे होता है?
आपको बता दे जब भी आप वोट देने जाते है और आप किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाह रहे है तो आपको नोटा बटन दबाना होता है इसके लिए ईवीएम मशीन पर इसका चिन्ह दिया होता है जिसमे एक मतपत्र होता है तथा इस पर एक क्रॉस का निशान बना रहता है। 18 दिसंबर 2015 को चुनाव आयोग द्वारा Nota के चिन्ह को चुनाव के लिए चुना गया था। गुजरात के राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान द्वारा नोटा चिन्ह को बनाया गया है।
भारत के अलावा अन्य देशों में है नोटा का विकल्प
चुनाव के दौरान भारत में उम्मीदवार को वोट डालने के लिए भारत सरकार द्वारा नागरिकों को नोटा का भी ऑप्शन दिया हुआ है। भारत के अलावा नोटा विकल्प को चुनाव के दौरान स्पेन, फ़्रांस, बांग्लादेश, चिली, ग्रीस, यूक्रेन, फिनलैंड, स्वीडन, बेल्जियम तथा कोलंबिया आदि देशों में भी अपनाया जाता है। सर्वप्रथम इस विकल्प का इस्तेमाल संयुक्त राज्य अमेरिका में किया गया था।
उम्मीदवार के चयन में नोटा का महत्व क्या है?
आपको बता दे साल 2018 में पहले जो चुनाव हुआ करते थे उसमे मतदाताओं द्वारा नोटा में दिए गए मतों को अनुचित माना जाता था अर्थात इस दिए गए वोट का उम्मीदवार के हार और जीत में किसी भी तरह का महत्व नहीं होता था। लेकिन जब 2018 में चुनाव हुए उसमे पहली बार नोटा में दिए गए वोटों को बराबर का दर्जा प्राप्त किया गया। अगर फिर से चुनाव कराये जाते है और नोटा को ज्यादा वोट प्राप्त होते है तो जो उम्मीदवार दूसरे नंबर पर होता है उसे जिताया जाता है। इसके अलावा यदि नोटा तथा उमीदवार के समकक्ष वोट मिलते है तो उम्मीदवार जीत जाता है।