Preamble of the Constitution: भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है ? शब्दों का अर्थ | महत्व

सविंधान की मूल भावना को सामने रखने के लिए भारतीय सविंधान की प्रस्तावना भी लिखी गई है। सविंधान कई प्रकार के होते है जैसे- लिखित अथवा अलिखित।

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Reported by Pankaj Yadav

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Preamble of the Constitution: भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है ? शब्दों का अर्थ | महत्व

जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि भारत के सविंधान का निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर जी को कहा जाता है। 26 नवंबर 1949 को भारत सविंधान पारित किया गया था जो 26 जनवरी 1950 को देश में लागू किया गया था। सविंधान की मूल भावना को सामने रखने के लिए भारतीय सविंधान की प्रस्तावना भी लिखी गई है। सविंधान कई प्रकार के होते है जैसे- लिखित अथवा अलिखित। परन्तु आपको बता दे भारत का सविंधान एक लिखित सविंधान है। सविंधान की प्रस्तावना में मूल आदर्शों को समाविष्ट किया गया है।

अमेरिका देश के सविंधान से भारतीय सविंधान की प्रस्तावना का विचार लिया गया है और ऑस्ट्रेलिया का जो सविंधान से प्रस्तावना की भाषा को लिया गया है। आज हम आपको इस आर्टिकल में भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है ? शब्दों का अर्थ | महत्व आदि से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी को साझा करने वाले है इसलिए आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।

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भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है ?

13 दिसम्बर 1946 को जवहार ला नेहरू जी के द्वारा सविंधान सभा में प्रस्तुत की गई प्रस्तावना को भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आमुख भी कहा जाता है। भारतीय सविंधान की प्रस्तावन में समाजवाद, अखडण्ता तथा पंथनिरपेक्ष शब्द 42वां सविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़े गए थे। देश में सर्वोच्च कानून का परिचय प्रस्तावना को माना जाता है।

आप जब भी कोई किताब पढ़ते है तो उसके पहले पेज पर पूरी किताब के बारे में प्रस्तावना दी होती है कि किताब की मूल भाषा, तत्त्व व संरचना क्या है जिससे हमे यह पता चलता है कि यह किताब किसके बारे में बताने जा रही है। इसका क्या उद्देश्य है यह पाठकों को सम्बोधित करती है। जिससे हमे इससे सम्बंधित मूल तत्वों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। भारत के संविधान निर्माण में उसके मूल तत्वों, मूल उद्देश्यों को प्रकट करके प्रस्तावना की रचना की गई है। भारतीय सविंधान की प्रस्तावना भी दी गई है जो कुछ इस प्रकार से है-

भारत का सविंधान

उद्देशिका

हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:

सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठता और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बन्धुत्वा बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस सविंधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत दो हजार छह विकर्मी) को एतदद्वारा इस सविंधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मपिर्त करते हैं।

प्रस्तावना, शब्दों का अर्थ-

हम भारत के लोग-

हम भारत के मूल निवासी है और हम एक प्रकार से भारतीय राजव्यवस्था का मूल आधार है। यहां पर हम शब्द इसलिए कहा गया है कि देश के लोग यह बताना चाहते है कि हम स्वयं ही अपने निर्णय और अपने भाग्य का निर्माण कर सकते है। इस शब्दावली से देशवासियों की इच्छा को प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है।

सम्प्रभुता

प्रस्तावना में सम्प्रभुता के अर्थ से यह स्पष्ट किया जा रहा है कि हम एप आंतरिक मामलों को स्वयं सुलझा सकते है हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र है, अर्थात किसी भी नियम, पालन को करने के लिए किसी भी प्रकार की सत्ता मजबूर नहीं कर सकते है।

समाजवादी

समाजवादी शब्द सविंधान के 42वें संसोधन में शामिल किया गया है यह संसोधन वर्ष 1976 में किया गया था। इसका मतलब यह है कि देश में विभिन धर्म, जाति के नागरिक एक समान है। यदि किसी कारण देश में असमानता का माहौल उत्पन्न होता है तो सरकार द्वारा नागरिकों के बीच समाजवाद का निर्माण किया जाता है जिससे देश में समानता बनी रहे।

पंथनिरपेक्ष

पंथनिरपेक्ष शब्द को शब्द सविंधान के 42वें संसोधन में शामिल किया गया है। अर्थात इसके मूल तत्त्व भारतीय अनुच्छेद 25 से 28 तक निहित किए गए है। इसका अर्थ देश में सभी धर्मों को बड़ा या छोटा ना बताते हुए एक समान रूप से मानना है प्रत्येक जाति,धर्म को बढ़ावा एक समान रूप से बढ़ावा देना है।

लोकतंत्रात्मक

भारत के लोकतान्त्रिक देश है इस प्रकार देश में प्रत्येक क्षेत्र में लोकतंत्र की स्थापना करनी है। प्रत्येक मनुष्य समान है और उसे सामान रूप से निर्धारित अधिकार प्राप्त हो।

गणराज्य

गणराज्य एक भारतीय सविंधान का रूप है। इसमें भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य को भारतीय सविंधान संसोधन में शामिल किया गया है।

सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय

सविंधान के अनुसार देश में प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय समान रूप से मिलना चाहिए। उन्हें आर्थिक, समाजिक, राजनैतिक न्याय प्राप्त करने का निवेदन उद्देशिका द्वारा किया जाता है। इससे सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी सविंधान के भाग-4 में मूल अधिकार एवं भाग-3 में अलग-अलग नियम बताये गए है।

विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता

विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता का मतलब यह कहा गया है कि जो मनुष्य के विकास के लिए अवसर होते है वह सबको प्रदान को। सविंधान के भाग-3 में मूल अधिकारों के तहत उद्देशिका में उल्लिखित आर्दशों के प्रावधान किए गए है।

प्रतिष्ठा और अवसर की समता

प्रतिष्ठा और अवसर की समता का अर्थ प्रत्येक मनुष्य को किसी भी काम, विशेषाधिकारों की समाप्ति, आगे बढ़ने के अवसर समान रूप से प्राप्त होने चाहिए। आपको सविंधान के भाग-3 तथा भाग-4 में आपको इससे रेलेटेड प्रावधान वर्णित मिलेंगे।

एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता

देश में नागरिकों के बीच भावनात्मक संबंधों को बांधने के लिए बंधुता शब्द आदर्शों को शामिल करता है। भावनात्मक एकता का होना हर किसी व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है इसके बिना ना तो राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित हो पाती है और ना ही किसी व्यक्ति के सम्म्मान की रक्षा। संसोधन द्वारा उद्देशिका में अखण्डा शब्द को 42वें सविंधान संसोधन में प्रस्तुत किया गया है।

भारतीय संविधान का महत्व

सविंधान का कार्य देश में शासन व्यवस्था को नियंत्रित करके उचित रूप से कानून का संचालन करना है। इसे गणतंत्र राष्ट्र का आधार भी कहा जाता है। सविंधान द्वारा ऐसे नियम और कानून का निर्माण किया जाता है जिससे राष्ट्र के प्रशासन को सुचारु रूप से चलाया जा सके। संविधान का महत्व देश में प्रत्येक नागरिक के लिए है। देश के नागरिकों में ही राष्ट्र की मूल शक्ति निहित होती है यह सविधान के आधार पर माना जाता है।

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