Rakshabandhan ki Katha: रक्षा बंधन का त्यौहार मनाने से जुडी पौराणिक कथाएँ, सतयुग से कलयुग तक

रक्षा बंधन (Raksha bandhan) का त्यौहार सतयुग से ही मनाया जाने लगा था। सतयुग में ही माँ लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा का सूत्र बाँधकर 'रक्षाबंधन' को शुरू कर दिया था। रक्षा बंधन के पर्व के शुभ अवसर पर बहुत सी कथाएँ-कहानी जुडी है जिनको जानना भी काफी अच्छा अनुभव रहता है।

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Reported by Pankaj Yadav

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Rakshabandhan Ki Kahaniyan : सदियों से आज के आधुनिक समय तक देश में रक्षा बंधन का त्यौहार मनाने की परंपरा जारी है। सभी बहने पूजा की थाल को सजाकर अपने अपने भाइयों को राखी बांधती है। दोनों ही एक दूसरे के लिए मंगलकामना करते है। रक्षा बंधन से जुड़ी प्राचीन कथाओ को भी जानना काफी रोचक है चूँकि इस पर्व की शुरुआत कलयुग से भी पहले हो चुकी थी।

शास्त्रों में ऐसी धारणा है कि रक्षा बंधन (Raksha bandhan) का त्यौहार सतयुग से ही मनाया जाने लगा था। सतयुग में ही माँ लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा का सूत्र बाँधकर ‘रक्षाबंधन’ को शुरू कर दिया था। रक्षा बंधन के पर्व के शुभ अवसर पर बहुत सी कथाएँ-कहानी जुडी है जिनको जानना भी काफी अच्छा अनुभव रहता है।

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इंद्र-इंद्राणी के रक्षाबंधन की कथा

भविष्य पुराण में एक कहानी मिलती है कि राजा इंद्र को उनकी पत्नी शुचि ने राखी बाँधी थी। एक समय देवो के राज इंद्र की असुरो के साथ भयंकर लड़ाई हो रही थी और दानवो से हार होते देख इंद्र की पत्नी शुचि ने गुरु बृहस्पति के आदेश से राज इंद्र के हाथ पर रक्षा का सूत्र बाँधा था। इस रक्षा के सूत्र की शक्ति से ही इंद्र ने अपने और अपनी सेना की रक्षा की थी।

राजा बलि को माँ लक्ष्मी का राखी बाँधना

राजा बलि के दान की प्रसिद्धि इतिहास में हमेशा ही रही है। एक समय की घटना है कि राजा बलि को माँ लक्ष्मी ने ही राखी बाँधकर भगवान विष्णु को माँग लिया था। कथा के अनुसार, एक बार राजा बलि ने एक यज्ञ किया था और उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने वामन का अवतार लेकर 3 पग भूमि मांगी। बलि की स्वीकृति के बाद भगवान ने 2 पद में स्वर्ग एवं पृथ्वी को नाप दिया और तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर पैर रखने के लिए दिया।

बलि ने याचना की कि मेरा सभी कुछ चला गया है और आप मेरे साथ ही पाताल में आकर रहे। विष्णुजी ने बलि के साथ पाताल लोक चलकर निवास करने लगे। बैकुंठ में इस बात से परेशान माँ लक्ष्मी ने एक निर्धन स्त्री का रूप लेकर बलि से राखी बंधवाई। इसके बाद वो अपने सच्चे रूप में आकर राखी के विधान के अनुसार ‘श्रीहरि’ की माँग करने लगी। किन्तु श्रीविष्णु ने बलि को वर दिया कि वे स्वयं पाताल लोक में वर्ष में 4 माह निवास करेंगे।

महाभारत में द्रोपदी का श्रीकृष्ण को राखी बाँधना

महाभारत काल में राजधानी इंद्रप्रस्थ में राजा युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया और सभा में शिशुपाल भी बैठा था। इस मौके पर वो भगवान कृष्ण पर अपशब्द कहने लगा तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका संहार कर दिया। इसी दौरान श्री कृष्ण की अंगुली चक्र से घायल हो गई और इसने में खून निकल आया तो द्रोपदी ने तुरंत ही साडी के पल्लू को बांधकर खून को रोका।

भगवान कृष्ण ने भी द्रोपदी को बचन देते हुए कहा कि वे रक्षा सूत्र का वचन निभाएंगे। आगे चलकर जब द्रोपदी का सभा में चीरहरण हो रहा था तो कृष्णजी ने द्रोपदी की साडी को बढ़ाकर अपना वचन निभाया था।

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हुमायूँ और कर्णावती का रक्षा बन्धन

रानी कर्णावती के कारण रक्षा बन्धन का पर्व मध्यकाल में देश के सभी भाग में मनने लगा। उस दौर ने हर राज्य में आपसी खून-खराबा जोरो पर था। मेवाड़ में राजा की विधवा पत्नी कर्णावती राज सिंहासन सम्हाले हुए थी। गुजरात के बादशाह से अपने राज्य को छीनने की सम्भावना के कारण रानी ने हुमायु को राखी भेजी। इसके बाद हुमायुँ ने भी रानी के राज्य की रक्षा कर वचन निभाया।

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