Premanand Ji Maharaj: राधारानी की भक्ति में लीन और वृंदावन के प्रसिद्ध प्रेमानंद जी महाराज को सभी जानते हैं। उनके भजन और सत्संग में लोग दूर-दूर से आते हैं। प्रेमानंद जी महाराज की ख्याति व्यापक है। इंस्टाग्राम और फेसबुक पर आपने भी उनके विडिओ जरूर देखें होंगे।
यह माना जाता है कि भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद, वे घर छोड़कर वृंदावन आए। आपको शायद नहीं पता होगा कि प्रेमानंद जी महाराज ने आम जीवन क्यों छोड़ा और संन्यास कैसे लिया। आइए उनके जीवन के बारे में जानते हैं।
संन्यासी बनने के बाद कई दिनों तक रहे भूखे
प्रेमानंद जी महाराज संन्यासी बनने के लिए घर का त्याग कर वाराणसी आ गए और यहीं अपना जीवन बिताने लगे. संन्यासी जीवन की दिनचर्या में वे गंगा में प्रतिदिन तीन बार स्नान करते थे और तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान व पूजन किया करते थे. वे दिन में केवल एक बार ही भोजन करते थे. प्रेमानंद जी महाराज भिक्षा मांगने के स्थान पर भोजन प्राप्ति की इच्छा से 10-15 मिनट बैठते थे. यदि इतने समय में भोजन मिला तो वह उसे ग्रहण करते थे नहीं हो सिर्फ गंगाजल पीकर रह जाते थे. संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद जी महाराज ने कई-कई दिन भूखे रहकर बिताया.
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प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय (Biography of Premanand Ji Maharaj)
उनका जन्म कानपुर, उत्तर प्रदेश में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनका बचपन का नाम (premanand ji maharaj real name) अनिरुद्ध कुमार पांडे था। उनके पिता का नाम शंभू पांडे और माता का नाम रामा देवी था। उनके परिवार में धार्मिकता और भक्तिभाव का माहौल था। 5वीं कक्षा से ही उन्होंने गीता का पाठ शुरू किया और आध्यात्म में रुचि बढ़ने लगी। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने ब्रह्मचारी बनने का फैसला किया। उनका संन्यासी नाम आरयन ब्रह्मचारी था।
प्रेमानंद जी के वृंदावन आने की कहानी चमत्कारी है। एक अपरिचित संत ने उन्हें श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में चैतन्य लीला और रासलीला के आयोजन में आमंत्रित किया। पहले उन्होंने इनकार किया, लेकिन बाद में स्वीकार कर लिया। यह आयोजन उन्हें बहुत पसंद आया। इसके बाद, वे वृंदावन गए और राधा वल्लभ सम्प्रदाय से जुड़े।
प्रेमानंद जी के वृंदावन पहुंचने की चमत्कारी कहानी
प्रेमानंद महाराज जी के संन्यासी बनने के बाद वृंदावन आने की कहानी बेहद चमत्कारी है. एक दिन प्रेमानंद जी महाराज से मिलने एक अपरिचित संत आए और उन्होंने कहा श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्रीराम शर्मा के द्वारा दिन में श्री चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला मंच का आयोजन किया गया है, जिसमें आप आमंत्रित हैं. पहले तो महाराज जी ने अपरिचित साधु को आने के लिए मना कर दिया. लेकिन साधु ने उनसे आयोजन में शामिल होने के लिए काफी आग्रह की, जिसके बाद महाराज जी ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया. प्रेमानंद जी महाराज जब चैतन्य लीला और रासलीला देखने गए तो उन्हें आयोजन बहुत पसंद आया. यह आयोजन लगभग एक महीने तक चला और इसके बाद समाप्त हो गया.
चैतन्य लीला और रासलीला का आयोजन समाप्त होने के बाद प्रेमानंद जी महाराज को आयोजन देखने की व्याकुलता होने लगी कि, अब उन्हें रासलीला कैसे देखने को कैसे मिलेगी. इसके बाद महाराज जी उसी संत के पास गए जो उन्हें आमंत्रित करने आए थे. उनसे मिलकर महाराज जी कहने लगे, मुझे भी अपने साथ ले चलें, जिससे कि मैं रासलीला को देख सकूं. इसके बदले मैं आपकी सेवा करूंगा.
संत ने कहा आप वृंदावन आ जाएं, वहां आपको प्रतिदिन रासलीला देखने को मिलेगी. संत की यह बात सुनते ही, महाराजी को वृंदावन आने की ललक लगी और तभी उन्हें वृंदावन आने की प्रेरणा मिली. इसके बाद महाराज जी वृंदावन में राधारानी और श्रीकृष्ण के चरणों में आ गए और भगवद् प्राप्ति में लग गए. इसके बाद महाराज जी भक्ति मार्ग में आ गए. वृंदावन आकर वे राधा वल्लभ सम्प्रदाय से भी जुड़े.