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द्रविड़ और सनातन संस्कृति के सघर्ष का इतिहास, आज के समय की राजनीति को भी प्रभावित करता है

इंडिया महागठबंधन की मीटिंग में उदयनिधि स्टालिन के बयान ने देशभर में द्रविड़ और सनातन के बीच के संघर्ष को सामने ला दिया है। दक्षिण में रहने वाले द्रविड़ संस्कृति के लोग खुद को सनातन संस्कृति के भेदभाव एवं छुआछूत की वजह से अलग मानते है।

हाल ही में उदयनिधि स्टालिन (Udhayanidhi Stalin) के भाषणों ने राजनीति में काफी बहस का दौर पैदा कर दिया है। उनका कहना है कि ‘हमें सनातन को मिटाना होगा।’ इसी वजह से काफी समय के बाद फिर से सनातन और द्रविड़ संस्कृति का विरोध सामने आ गया है।

इन दोनों ही संस्कृति के बीच टकराव का मूल कारण भेदभाव एवं छुआछूत से पैदा हुआ है। दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को साल 2016 में अंतिम संस्कार के समय दफनाकर समाधि बनाई गई थी। इसी प्रकार से एक और बड़े नेता एम. करूणानिधि को भी दफनाकर समाधि दी गई। इन दोनों ही मामलो में प्रश्न आता है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया।

इसकी प्रमुख वजह जयललिता और करूणानिधि के द्रविड़ आंदोलन से सम्बंधित होना बताया जाता है। इस मूवमेंट से सम्बंधित लोग ब्राह्मण संस्कृति से जुड़े कर्मकांडों को नहीं मानते है। जयललिता भी द्रविड़ पार्टी की मुखिया रह चुकी थी। अपने विरोध के कारण ही ये लोग जलाये जाने के स्थान पर दफनाने को चुनते है।

द्रविड़ संस्कृति का सनातन से विरोध है

द्रविड़ संस्कृति के कर्मकांड ही उसके ब्राह्मण संस्कृति (Sanatan Dharma) से विरोध को प्रदर्शित कर देते है। इसी वजह से आज के दौरा के नए नेता जैसे उदयनिधि स्टालिन का सनातन को मिटाने का बयान भी दोनों संस्कृतियों के बीच के खिचाव को व्यक्त कर देता है।

उदयनिधि के अनुसार द्रविड़ मॉडल

उदयनिधि के मुताबिक, सनातन धर्म सामाजिक न्याय एवं समानता का विरोधी है। कुछ चीजों का विरोध नहीं हो सकता है, उनको समाप्त कर देना होगा। हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया एवं कोरोना का विरोध नहीं करते है, हमको इसको मिटाना होगा। ऐसे ही हमें सनातन को मिटाना है। सनातन नाम संस्कृत से है।

वे प्रश्न करते है कि सनातन क्या है? इसके उत्तर में बताते है कि सनातन का मतलब है कि कुछ भी बदला नहीं जाना चाहिए। किन्तु द्रविड़ मॉडल परिवर्तन की माँग रखता है एवं सभी की समानता की बात करता है।

दोनों संस्कृति के ठहराव का इतिहास

इन दोनों के बीच का आधारभूत कारण भेदभाव एवं छुआछूत रहा है। वैसे तो इस बात का इतिहास काफी प्राचीन ही है लेकिन एक मामले में स्वतंत्रता से 2 दशक पहले इनके संघर्ष को सामने ला दिया था। इनका जुड़ाव त्रावणकोर महाराज की राजनीति से है। ये बात 1924 की है, केरल में त्रावणकोर के सम्राट के मन्दिर की तरफ जा रहे मार्ग को दलितों के आने जाने के लिए प्रतिबंधित किया गया।

इस मामले से दलितों के बीच रोष पैदा हो गया और वहां के लोगो ने इसका विरोध प्रदर्शन भी करना शुरू किया। महाराज ने उनको गिरफ्तार भी कर दिया। इसी मोमेंट के समय वहां पर पेरियार (Periyar) का भी प्रवेश हुआ और वे दलितों के साथ खड़े हुए। पेरियार ने अपने दोस्त त्रावणकोर राज का भी विरोध किया एवं बहुत महीने तक जेल में भी रहे।

पेरियार के आंदोलन में क्या हुआ?

पेरियार ने अपने विरोध के कारण मद्रास राज्य कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में त्यागपत्र दे डाला और स्वयं मोमेंट के नेता भी बने। त्रावणकोर में जाने पर उनको राजकीय सत्कार भी मिला किन्तु वे महाराज का विरोध करते हुए स्वागत-सत्कार को अस्वीकृत करने लगे। इसी बीच खबर मिली कि चेरनमादेवी नगर में कांग्रेसी अनुदान से चलाये जा रहे सुब्रह्मण्यम अय्यर के विद्यालय में ब्राह्मण एवं गैर-ब्राह्मण बच्चों में खाने को परोसने में भेदभाव हो रहा है।

द्रविड़ संस्कृति पर विद्वानों के मत

कुछ विद्वान मानते है कि द्रविड़ लोग भारत में सबसे प्राचीन जाति है और ये दक्षिण के साथ ही उत्तर भारत में भी बसते थे। उत्तर के द्रविड़ ही बलूचिस्तान एवं अफगानिस्तान की ओर पलायन कर गए थे। अफगानिस्तान में जाकर इन्होने ब्राहुई वर्ग को तैयार किया जिनकी बोली भी तमिल एवं तेलुगु के जैसी है। दक्षिण में भी द्रविड़ लोग ही तमिल, तेलुगु, तेलुगु एवं मलयालम संस्कृति के रूप में रहे और इनकी भाषा को द्रविड़ियन भाषा कहलाई।

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