दिल्ली हाईकोर्ट ने 20 मार्च 2024 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसने केंद्र सरकार के 18 नवंबर 2009 के आदेश को अवैध करार दिया। इस आदेश में कहा गया था कि केवल रक्षा पेंशनभोगियों के लिए पेंशन समानता का प्रावधान लागू होगा, सिविल पेंशनभोगियों के लिए नहीं। इस फैसले से 2006 से पहले रिटायर हुए सभी पेंशनभोगियों को समान पेंशन मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
क्या था मामला?
दरअसल, 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि एक ही रैंक से रिटायर्ड पेंशनभोगियों की पेंशन समान होनी चाहिए, चाहे वे रक्षा के हों या सिविल के। यह फैसला पेंशनभोगियों के बीच पेंशन में असमानता को समाप्त करने के उद्देश्य से किया गया था। इसके बावजूद, केंद्र सरकार ने 2009 में एक सर्कुलर जारी कर कहा था कि यह समानता केवल रक्षा पेंशनभोगियों के लिए लागू होगी। इस निर्णय से नाराज सिविल पेंशनभोगियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जो अंततः उनके पक्ष में फैसला आया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर 2008 को दिए अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि वेतन आयोग के आने या पेंशन में संशोधन के कारण अगर पेंशन में वृद्धि होती है, तो इसका लाभ सभी पेंशनभोगियों को मिलना चाहिए। इस निर्णय ने पेंशनभोगियों में उम्मीद जगाई कि उन्हें भी समान पेंशन का लाभ मिलेगा।
सरकार का विरोध और पेंशनभोगियों का संघर्ष
केंद्र सरकार के 2009 के सर्कुलर ने इस उम्मीद को तोड़ दिया। सरकार ने तर्क दिया कि पेंशन समानता का लाभ केवल रक्षा पेंशनभोगियों को मिलेगा। इस आदेश के खिलाफ सिविल पेंशनभोगियों ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, अंततः 20 मार्च 2024 को कोर्ट ने सिविल पेंशनभोगियों के पक्ष में फैसला सुनाया।
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के 18 नवंबर 2009 के सर्कुलर को अवैध करार देते हुए कहा कि सभी पेंशनभोगियों को समान पेंशन मिलनी चाहिए। कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 14 का हवाला देते हुए कहा कि पेंशन में समानता सुनिश्चित की जानी चाहिए। यह फैसला केवल न्याय का मामला नहीं है, बल्कि यह पेंशनभोगियों के अधिकारों की रक्षा करने और उनके सम्मान को बरकरार रखने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारत पेंशनभोगी समाज का अनुरोध
इस फैसले के बाद भारत पेंशनभोगी समाज ने केंद्र सरकार से तुरंत इस निर्णय को लागू करने की मांग की है। समाज ने कहा कि 2006 से पहले के सभी पेंशनभोगियों को 1 जनवरी 2006 के बाद रिटायर हुए पेंशनभोगियों के बराबर पेंशन मिलनी चाहिए।
समाज ने चेतावनी दी है कि अगर इस पर जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो वे पुनः कोर्ट का रुख करेंगे। समाज ने इस मुद्दे को केवल न्याय का मामला नहीं, बल्कि राष्ट्र की सेवा करने वाले पेंशनभोगियों के प्रति कानूनी दायित्वों की पूर्ति भी बताया।
फैसले का महत्व
इस फैसले का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह सभी पेंशनभोगियों को समान पेंशन दिलाने के लिए एक बड़ा कदम है। इससे पेंशनभोगियों के बीच पेंशन असमानता समाप्त होगी और उन्हें समान पेंशन का लाभ मिलेगा।
अब यह केंद्र सरकार पर निर्भर करता है कि वह इस फैसले को कैसे और कब लागू करती है। पेंशनभोगियों को उम्मीद है कि सरकार इस फैसले का सम्मान करेगी और सभी पेंशनभोगियों को समान पेंशन का लाभ दिलाएगी।
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला पेंशनभोगियों के लिए एक बड़ी जीत है। यह निर्णय सभी पेंशनभोगियों के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें समान पेंशन दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब देखना होगा कि केंद्र सरकार इस फैसले को कैसे लागू करती है और पेंशनभोगियों को उनका हक कब तक मिलता है।