‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पॉलसी क्या है, क्या हैं फायदे नुकसान जानें

वन नेशन वन इलेक्शन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अलग-अलग चुनावो में लगने वाली पैसो की लागत में कमी आएगी। एक रिपोर्ट के अनुसार। 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रूपए खर्च किये गए थे।

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Reported by Pankaj Yadav

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'वन नेशन वन इलेक्शन' पॉलसी क्या है, क्या हैं फायदे नुकसान जानें

वन नेशन वन इलेक्शन के लिए सरकार द्वारा एक पालिसी बनाई गयी है जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा की जाएगी। इस नए नियम के बारे में बीजेपी सरकार काफी समय से विचार कर रही थी। वन नेशन वन नेशन को लागू करने में बहुत सी चुनौतियां है, जिनमे संवैधानिक चुनोतिया भी शामिल है। इस मुद्दे को लेकर देश भर में काफी बहस छिड़ गयी है। तो चलिए हम भी जानते है आखिर ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पॉलसी क्या है और इसके क्या फायदे है और क्या नुकसान है।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पॉलसी क्या है ?

केंद्र सरकार को चुनने के लिए लोकसभा चुनाव कराए जाते है एवं राज्य सरकार को चुनने के लिए विधानसभा के चुनाव होते है। यदि सरकार वन नेशन वन इलेक्शन बिल पार्लियामेंट में पेश करती है और यह लोकसभा और राज्यसभा दिनी से पास हो जाता है तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। अर्थात पुरे भारत राज्यों की सरकार और केंद्र सरकार को चुनने के लिए चुनाव एक साथ कराये जायेगे। इस विचार का कुछ लोग समर्थन कर रहे तो वही कुछ लोगो को यह विचार पसंद नहीं आ रहा। बीजेपी विरोधी पार्टियाँ अक्सर इसका विरोध करती नजर आती है।

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वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे

वन नेशन वन इलेक्शन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अलग-अलग चुनावो में लगने वाली पैसो की लागत में कमी आएगी। एक रिपोर्ट के अनुसार। 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रूपए खर्च किये गए थे। चुनाव के दौरान अचार संहिता लागू कर दी जाती है। जिस कारण सरकार उस समय किसी भी नए प्रोजेक्ट और पब्लिक वेलफेयर पॉलिसी को लागू नहीं कर सकती। साथ ही लॉ कमीशन का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से मतदान प्रतिशत बढ़ेगा क्योँकि वोटर्स का एक बार में ही वोट डालने का ये फैसला अधिक सुविधाजनक होगा।

वन नेशन वन इलेक्शन के नुक्सान

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर रीजनल पार्टीज को अक्सर ये डर होता है कि अगर ऐसा होता है तो वह स्थानीय मुद्दों को उठा नहीं पाएंगे क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे उनकी जगह ले लेंगे और वे चुनावी खर्च और चुनावी रणनीति के मामले में भी राष्ट्रीय पार्टियों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। कुछ स्थानीय राजनितिक दलों का कहना यह भी है कि यदि चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर ही लड़ा जायेगा तो स्थानीय मुद्दों के बारे में विचार विमर्श कौन करेगा वो तो उपेक्षित ही रह जायेगे। ऐसी स्थिति में नुकसान तो आम जनता का ही होगा। ऐसे छोटे राजनितिक दाल जो स्थानीय मुद्दों पर राजनीति करते है उनका भविष्य ख़राब हो जयेगा।

अपोजीशन पार्टीज द्वारा की जा रहा है इसका विरोध

वन नेशन वन इलेक्शन का अपोजीशन पार्टीज द्वारा काफी विरोध किया जा रहा है। एआईएमआईएम के चीफ असुदुद्दीन ओवैसी ने इस विचार के संबंध में कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन भारत के संविधान के खिलाफ होगा क्योंकि फेडरेलिज्म भी भारत के संविधान का एक हिस्सा है और बीजेपी के पास राजयसभा में मोजीरिटी भी नहीं है और साथ ही भारत के ऐसे बहुत से राज्य है जो इसको स्वीकार नहीं करेंगे।

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