रीढ़ की हड्डी की समस्या एवं खतरे को जाने, इसके लिए सावधानियों को भी जाने

हमारी बॉडी में दिमाग और अन्य भागो के बीच सबसे जरुरी कड़ी है हमारी रीढ़ की हड्डी। किन्तु मॉडर्न दौर में ख़राब लाइफस्टाइल, अधिक वजन, किताबो का बोझ एवं स्क्रीन टाइम आदि ने इस कड़ी (spinal cord) को कमजोर किया है। अब इस रीढ़ की समस्या को शुरुआत में रोकने एवं कमर के दर्द की रोकथाम के लिए कुछ खास उपाय करने की जरूरत है।

रीढ़ की हड्डी पर ही हमारी बॉडी की बुनियाद खड़ी होती है और इसके 3 मुख्य पार्ट होते है। पहला है, गर्दन, दूसरा छाती और तीसरा है कमर से नीचे का भाग। हमारे मस्तिष्क को भी सभी सन्देश रीढ़ की तंत्रिका ही देती है।

रीढ़ में समस्या के मुख्य लक्षण

  • कमर एवं इसके नीचे के भाग में जकड़न एवं दर्द रहना और दिन के बजाए रात्रि में अधिक दर्द होना।
  • अक्सर गर्दन में दर्द एवं जकड़न होते रहना।
  • कमर एवं कूल्हों से लेकर पैर तक दर्द होते रहना और हाथो में झनझनाहट भी होना।
  • वर्कआउट एवं पैदल चलने के बाद कमर एवं गार्डन में दर्द होना।
  • गर्दन एवं कमर के हिस्से का सुन्न होना।
  • रीढ़ की परेशानी होने के बाद व्यक्ति को पाखाना एवं पेशाब आदि में भी परेशानी होगी।

रीढ़ से जुडी विभिन्न समस्याएँ

  • गठिया – इस बीमारी में रीढ़ की हड्डी के कार्टिलेज घिस जाते है जिसका प्रभाव वर्टिब्रा, रीढ़ की दूसरी वर्टिब्रा के संपर्क में आ जाती है। इस वजह से बॉडी में पेन होने लगता है। अभी इस समस्या का कोई भी उपचार नहीं है किन्तु दर्द में कमी की जा सकती है।
  • हार्निएटेड डिस्क – हर एक वर्टिब्रा के मध्य में एक डिस्क जैसी चीज होती है जोकि वर्टिब्रा को आपस में संपर्क नहीं करने देती है। बहुत सी वजहों से डिस्क में टूटफूट हो जाती है जिससे दर्द होता रहता है।
  • सायटिका – रीढ़ के मामले में ये परेशानी बॉडी की सर्वाधिक लम्बी नस, सायटिका से सम्बंधित है। इसमें दर्द कमर के नीचे से होते हुए पैर तक पहुँच जाता है। ज्यादातर बॉडी के एक ही तरफ अधिक दर्द होता रहता है और अंत में सर्जरी होती है।
  • स्पाइनल स्टेनोसिस – रीढ़ में स्थित नसों में सिकुड़न आने के बाद इन पर दबाव बढ़ने लगता है। इसके बाद बॉडी में दर्द, सुन्नता, झुनझुनाहट, हाथो-पैरो में कमजोरी इत्यादि होने लगती है।
  • कूबड़ – वर्टिब्रा में खराबी आने के बाद रीढ़ आगे की ओर झुकने लगती है। इस बीमारी का उपचार व्यक्ति की उम्र एवं उसकी रीढ़ के घुमाव के ऊपर किया जाता है।
  • रीढ़ की चोट – यदि किसी चोट अथवा एक्सीडेंट के बाद रीढ़ की हड्डी में मौजूद नसों एवं कोशिकाओं को हानि होती है तो इसको रीढ़ की चोट कहते है। ऐसी दशा में बॉडी लकवाग्रस्त भी हो जाती है।

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sit properly and work
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रीढ़ की समस्या में सावधानियाँ

  • सही से बैठकर काम करें – नौकरी अथवा अपने कार्यस्थल पर एक ही स्थान पर बैठे रहने पर अपनी पोजीशन बदलनी चाहिए। अपनी टेबल एवं चेयर की ऊँचाई को भी सही दूरी पर रखना है। बच्चे की बैठने की पोजीशन पर ध्यान दें और उसको सही करें। सहूलियत वाली चेयर को चुने।
  • वजनदार सामान न उठाए – किसी भी वजनदार चीज को उठाते समय पर अपने घुटनो को मोड़कर सामान के समीप जाकर उसको उठाना है। कभी भी एकदम से झटका देकर न उठाए। ज्यादा वजन की वस्तु होने पर अन्य किसी की मदद लेनी है।
  • सही पोजीशन में सोए – अपना बिस्तर सहारा देने वाला चुने, यह न तो ज्यादा मुलायम हो और न ही ज्यादा कठोर हो। रीढ़ को ठीक रखने के लिए पेट के बल एवं करवट लेते समय घुटनो पर तकिये को रखना है।
  • योग एवं वर्जिस करें – योग एवं वर्कआउट करने से रीढ़ में ताकत आती है और इसका लचीलापन बरकारर रहता है। थोड़ी सी स्ट्रेचिंग, वॉकिंग एवं स्वीमिंग भी कर सकते है। दर्द होने पर चिकित्सक से परामर्श ले सकते है और इसके बाद ही अपना वर्कआउट तय करें।

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