योग-आयुर्वेद क्रियाओ से फेफड़ो की क्षमता को बढ़ाकर वायु प्रदूषण से बचाव करें

हाल के दिनों में वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगो को सांसो एवं दिल से जुडी समस्याएँ होने लगी है। ऐसे में देश के शीर्ष हॉस्पिटल एम्स ने भी शोध में आकड़ो को चिंताजनक पाया है।

किन्तु इसमें घबराने के बजाए कुछ योग एवं आयुर्वेदिक क्रियाओं के माध्यम से अपने फेफड़ो को मजबूती दे सकते है। इस प्रकार से वायु प्रदूषण (air pollution) के खिलाफ युद्ध को जीत सकते है।

वायु प्रदूषण में ये क्रियाएँ करें

नस्य कर्म

इस क्रिया के अंतर्गत सरसो अथवा तिल के तेल को अपनी नक् में लगाना होता है। इस प्रकार से वायु में मौजूद धूल के कम इस तेल में चिपकने के कारण भीतर श्वसन तंत्र में नहीं जा पाते है। नस्य क्रिया में षडबिन्दु जैसे औषधि वाले तेल का इस्तेमाल भी कर सकते है।

जलनेति

इस प्रक्रिया के में एक टोंटी वाले लोटे में हलके गर्म पानी को नाक के छिद्र में डालकर दूसरे छिद्र से बाहर करना होता है। या फिर इस पानी को नाक में डालकर मुँह के मार्ग से बाहर करने का प्रयास भी कर सकते है। इस क्रिया से नाक एवं श्वसन तंत्र की अच्छे से सफाई होती है और आगे भी संक्रमण नहीं जा पाता है।

स्वेदन

इस प्रक्रियामें गरम पानी, दूध अथवा चाय को पीने के बाद मोटा कपडा ओढ़कर पसीना लेते रहते है। इस प्रकर से फेफड़ो एवं बॉडी के दूसरे भागो तक जा चुके प्रदूषण के कण श्वसन तंत्र को सूजा नहीं पाते है। पसीने की वजह से फेफड़ो में जमा बलगम भी बाहर आ जाता है और इसके साथ में ही धूल के कण की भी निकासी हो जाती है।

वाष्पीकरण

सुबह एवं शाम के समय पर घर के भीतर के दरवाजो के नजदीक 2 से 3 ली. पानी को खुले में उबालना है। इस प्रक्रिया से से धूल एवं प्रदूषण के ज्यादातर कण नीचे बैठने लगेगें। इस प्रकार से आप अपने घर में प्रदूषण का स्तर कम कर सकते है। इस प्रकार से घर के बाहर भी पानी को छिड़के।

जड़ी-बूटियाँ

हल्दी, तुलसी, अडूसा, जूफा, अदरक, दाल चीनी इत्यादि को दूध अथवा चाय में डालकर उबालना या फिर काढ़ा बनाना है। इस तैयार काढ़े को पीने से गले में खराश एवं सूजन कम हो जाएगी। इसी प्रकार से दूध में खजूर, छोटी पीपल, मुनक्का एवं सौंठ को उबालकर पीने से इम्युनिटी एवं फेफड़ो को फायदा होता है।

औषधियों में सितोपलादि चूर्ण, तालीसादि चूर्ण, टंकण भस्म, चित्रक हरीतकी, अगस्त हरीतकी, वासावलेह एवं तुलसी, हल्दी, वसाका, भृंगराज, कुटकी, कासनी इत्यादि को लेना है। खून में ऑक्सीजन का स्तर कम होने पर स्वर्ण समीर पन्नग रस एवं त्रैलोक्य चिन्तामणि रस फायदेमंद हो सकते है। कब्जियत को दूर करने के लिए दूध में एरण्ड का तेल (केस्टर आयल) डालकर पीना है।

तेल

प्रदूषण के समय पर नाक एवं श्वसन मार्ग में आई सूजन एवं संक्रमण से बचने के लिए पुदीना, यूकेलिप्टिस एवं यष्टिमधु रस अथवा षडबिंदु तेल की 2-2 बुँदे नाक में डालनी है।

कुम्भक विधि

इस प्रक्रिया में फेफड़ो में पूरी तरह भर लेने के बाद देर तक रोकना होता है। इस क्रिया को सुबह एवं शाम के समय कर सकते है। कपालभाती, उज्जायी एवं भस्त्रिका प्रायाणाम, अनुलोम-विलोम, धनुरासन से भी फेफड़ो को शक्ति मिली है।

kumbhaka method
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प्रदूषण में यह परहेज याद रखे

चावल, दही, कढ़ी, गोभी, मटर, उड़द दाल, आइसक्रीम इत्यादि ठंडी वस्तुओ से दूरी बनानी होगी। हरी सब्जी, मुंग एवं मसूर दाल को खाना है। इसके अलावा बाजरा, ज्वार आदि गर्म तासीर वाले मोटे अनाज खा सकते है।

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