इजराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एमरजेंसी विशेष सत्र बुलवाया है। इस सेसन में युद्ध विराम के लिए जॉर्डन ने एक प्रस्ताव पेश कर दिया। यह प्रपोजल तुरंत सीजफायर का आह्वान करता है। किन्तु इस प्रपोजल में 7 अक्टूबर के दिन हमास की तरफ से हुए अटैक की बात नहीं है।
इजराइल-हमास के बीच चल रहे संघर्ष को लेकर गाजा में मानवीय आधार पर सीजफायर का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्वीकृत हो चुका है। जॉर्डन की ओर से लाए गए इस प्रस्ताव के पक्ष में 120 मत आए तो इसके विरोध में सिर्फ 14 ही मत पड़े। भारत सहित 45 देश इस प्रस्ताव पर मतदान करने से दूर रहे है।
कनाडा के प्रस्ताव को भारत का समर्थन
कनाडा ने जॉर्डन के इस प्रस्ताव में बदलाव करने की बात कहते हुए हमास के अटैक की भी निन्दा की है किन्तु कनाडा की तरफ से लाया गया प्रस्ताव स्वीकृत न हुआ। कनाडा के प्रस्ताव को लेकर यूनिटेड नेशन में पाकिस्तान के स्थाई प्रतिनिधि मुनीर अकरम का कहना है, अगर कनाडा का ये प्रस्ताव निष्पक्ष होता तो फिर इसमें हमास (Hamas) के साथ इजराइल का भी नाम होगा।
इसके बाद कनाडा के प्रस्ताव पर मतदान होने पर इसके समर्थन ने 88 मत एवं विरोध में 55 मत पड़ें और 23 देश इसको लेकर मतदान से दूर रहे। भारत सहित ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया एवं यूक्रेन ने भी कनाडा के प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग की है।
सीजफायर की तत्काल जरुरत है
अपने प्रस्ताव पर मत प्रक्रिया होने से पहले जॉर्डन के स्थाई प्रतिनिथि महमूद देफुल्लाह हमूद कहते है कि सीजफायर की तत्काल आवश्यकता है और वे इस तथ्य पर बल देते है कि फलीस्तीन के लोगो का दुःख भविष्य की पीढ़ियो पर छाप छोड़ेगी। उनका ये प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय कानून एवं दुनिया की शांति के लक्ष्य से मिलता है जोकि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की वजह है।
कनाडाई स्थाई प्रतिनिधि बॉब रे का कहना है कि यह महासभा इस वजह से मीटिंग कर रही है चूँकि एक भी जान का जाना एक त्रासदी जैसा है तो वो फलीस्तीनी हो या फिर इजराइली। उनके मुताबिक़ इस प्रस्ताव में जरुरी वजह को भी छोड़ा है और 7 अक्टूबर के दिन हमास ने इजराइल (Israel) पर अटैक किया था।
मानव जाति का ‘काला दिन’ – इजराइली राजदूत
इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद इजराइली राजदूत गिलाद एर्दान का कहना था कि ये घटना यूनिटेड नेशन एवं मानव जाति के लिए ‘एक काला दिन’ है। उनका (Gilad Erdan) कहना था कि हम उनको दुबारा हथियारबंद होने एवं इसी प्रकार से अत्याचार करते रहने की अनुमति देकर चुप नहीं बैठेंगे।
इजराइल को भी अपनी रक्षा का अधिकार है और ये तय करना है कि इसी प्रकार के अत्याचार फिर न दोहरे। इस बात को तय करने का एक ही रास्ता है और वह हमास को ख़त्म करना।
आतंक एक खतरनाक बीमारी है – भारतीय राजदूत
यूनिटेड नेशन में भारत के राजदूत योजना पटेल (Yojana Patel) का कहना था कि इस तरह के मामलो को वार्ता से सुलझाना होगा। 7 अक्टूबर के दिन इजराइल पर हुए हमले हैरान करने एवं निंदनीय थे। हम बंदी बनाये लोगो की तुरन्त एवं निशर्त वापसी की अपील करते है। आतंक ऐसा खतरनाक रोग है जिसको कोई भी बाउण्ड्री, राष्ट्रीयता एवं नस्ल नहीं है।
हमको एक होकर आतंक के विरुद्ध जीरो-टॉलरेंस की पॉलिसी चुननी होगी। वहाँ निरंतर घायलों की संख्या बढ़ रही है और बच्चो एवं महिलाओ को अपनी जाने गँवाकर इसकी कीमत देनी पड़ रही है। भारत हमेशा ही इजराइल-फलीस्तीनी मामले पर द्विराष्ट्रीय हल का पक्षधर रहा है।

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इजराइल को भी अपनी रक्षा का अधिकार – भारतीय सूत्र
भारत सरकार के एक सूत्र ने जानकारी दी है कि सरकार उन बातो के विषय में नहीं सोच रही है जोकि कूटनीतिक या फिर सैन्य रूप से हस्तक्षेप से अलग है। हमास ने गलती की है और इजराइल को भी अपने लोगो एवं जगह की रक्षा का पूरा अधिकार है। सूत्र के अनुसार, सरकार सऊदी, मिस्त्र एवं यूएई से शांतिपूर्ण हल को लेकर वार्ता कर रही है।