कुछ ऐसी चीजे है जिनका दीवाली के त्यौहार में माता लक्ष्मी के पूजन में विशेष महत्व होता है। लेकिन अधिकांश लोग इन चीजों को लेकर अनजान ही होते है। इन चीजों में प्रमुख नाम है कमल, कलश, शंख, हाथी इत्यादि। ये सभी सतयुग में हुए सागर मंथन की प्रक्रिया में माता लक्ष्मी के साथ ही निकले थे।
इस बात से ये साफ़ हो जाता है कि क्यों इन चीजों के बगैर माता लक्ष्मी का पूजन (Diwali Lakshmi Pujan) अधूरा कहा गया है। ये चीजे खुशहाली एवं समृद्धि के साथ ही जिन्दगी की पूर्णता के परिचारी है चूँकि हर कोई अपना अलग मानसिक एवं धार्मिक विचार रखता है। इन्ही में से कुछ तो ऐसे है जिनके बिना दीवाली का पूजन अधूरा ही होगा।
शंख
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि शंख चन्द्रमा एवं सूरज की तरह से ही देवतुल्य है। शंख के बीच में वायु देवता, पीछे के हिस्से में ब्रह्मा एवं आगे के हिस्से में गंगा एवं सरस्वती नदियाँ है। सागर मंथन की प्रक्रिया में पांचजन्य शंख लक्ष्मी जी के साथ प्रकट हुआ था। पांचजन्य शंख को माता लक्ष्मी के भाई कहते है। इसी शंख से अभिषेक होने पर लक्ष्मी खुश होती है।
कमल
हमको पद्मं एवं दूसरे पुराणों में कमल की महत्ता मिलती है। श्रीविष्णुजी के हाथो में हमेशा कमल का फूल विराजता है और माता लक्ष्मी तो कमल के फूल पर ही अपना आसान लगाकर विराजमान होती है। दीवाली पर माता को कमल अर्पित करना अच्छा होता है और ये जीवन में वैभव लाता है।
कलश
हिन्दू धर्म के धार्मिक कार्यो में कलश की उपस्थिति एक आम सी बात है। मंथन की प्रक्रिया में धन्वंतरि अपने हाथो में ‘अमृत कलश’ लेकर ही प्रकट हुए थे। कलश को दीवाली में भी स्थापित करते है और इसके मुख में ब्रह्मा, गले में शंकर एवं आधार में श्रीविष्णु की उपस्थिति होती है। अन्य देवी-देवता भी इसमें आकर मंगल कार्य को संपन्न करते है।
श्रीयंत्र
श्री यन्त्र हमारे शरीर की संरचना, ऊर्जा एवं चक्रो को ही प्रदर्शित करता है और इसकी में माँ लक्ष्मी का स्थाई निवास भी कहते है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार इसका पूजन करने से आदि देवी विशेष कृपा, समृद्धि एवं स्वर्ग में स्थान देगी। श्रीयंत्र को अपने यहाँ स्थापित करने में दिवाली का ही दिन सर्वाधिक अच्छा कहा गया है। माता के सेहत इसकी पूजा करने के विधान है।
पारिजात
माता लक्ष्मी को लेकर मान्यता है कि उनको पारिजात का पुष्प काफी अच्छा लगता है। इस फूल को हरीसिंगार भी कहते है। शास्त्रों में वर्णन है कि माता लक्ष्मी के साथ मंथन के दौरान इसका पेड़ भी उत्पन्न हो गया था। इस पेड़ को देवराज इंद्र ने पहले स्वर्ग एवं फिर धरती पर लगाया था। माता को नारियल के साथ पारिजात फूल चढ़ाने से वे काफी खुश होती है।
चक्र
गोमती चक्र सीप की ही भाँति एकदम स्वेत होता है इसमें एक चक्र भी रहता है। मान्यताओं में इसी चक्र को श्रीविष्णु का सुदर्शन चक्र कहा गया है। इस चक्र के पूजन से नेगेटिव एनर्जी समाप्त हो जाती है। दीवाली के पूजन में इस चक्र को पूजा स्थल पर देवी-देवताओं के साथ में ही रखते है। पूजन के बाद चक्र को लाल वस्त्र से ढककर तिजोरी में रखना होता है।
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उल्लू
दिवाली के दिन उल्लू के दर्शन होना माता लक्ष्मी के आने का संकेत कहलाता है। मान्यता है कि माता लक्ष्मी के कहा था कि जिस समय में पृथ्वी पर जाउंगी तो सबसे पहले मेरे पास आने वाले पशु-पक्षी को ही अपना वाहन बना लुंगी। अमावस्या की रात्रि में आने पर उल्लू उनके पास सबसे पहले पहुँचा था चूँकि घने अँधेरे की रात में सिर्फ उल्लू ही देखने की क्षमता रखता था।