इस वर्ष अमावस्या तिथि के दो दिनों तक होने के कारण गोबरधन पूजन को लेकर काफी लोगो में संशय की स्थिति भी हुई है। प्रत्येक वर्ष दीपावली से ठीक अगले ही दिन पर गोबर्धन पूजन होता है किन्तु इस वर्ष ऐसा नहीं हुआ है। पाँच दिनों के दीपावली त्यौहार के चौथे ही दिन में गोवर्धन पूजा होती आई है और यह तिथि ‘अन्नकूट’ के नाम से भी जाने जाती है।
आज के दिन (Govardhan Puja) भक्त अपने घर पर ही गोबर से गोबरधन महाराज की प्रतिमा बनाते है और परिजनों के साथ मिलकर सही मुहूर्त पर पूजा करते है।
गोबरधन पूजन का समय
इस वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 13 नवम्बर के दिन 02:56 बजे से शुरू हो रही है और यह तिथि 14 नवम्बर को दिन में 02:36 बजे समाप्त हो जाएगी। इस तरह से उदया तिथि को देखने पर 14 नवंबर का दिन ही गोवर्धन पूजन के लिए रहेगा।
गोवर्धन पूजन का शुभ मुहूर्त
14 नवंबर को सुबह के 06:43 बजे से 8:52 बजे तक गोबर्धन पूजन का योग कहा गया है और इसके बाद का दिन भी पूजन के लिए उपर्युक्त है। गोवर्धन पूजा हेतु शोभन योग सुबह से दिन के 01:57 बजे तक रहने वाला है और इसके बाद अतिगंड योग का आरम्भ होगा। अतिगंड योग को शुभ नहीं मानते है। साथ ही गोवेर्धन पूजन (Govardhan Puja) के ही दिन प्रातः अनुराधा नक्षत्र रहेगा।
गोवर्धन से जुडी कहानी
शास्त्रों में वर्णित कहानी के अनुसार कार्तिक माह ही प्रतिपदा तिथि को इंद्र देवता का पूजन होता था किन्तु श्रीकृष्ण ने अपने गाँवों के लोगो से कहा कि ब्रजवासियों को इस पूजन से कोई फायदा नहीं हो रहा है तो फिर वे इंद्रदेवता का पूजन न करें। उनकी सुनकर गाँव के लोगो ने यह पूजन बंद कर दिया किन्तु इस बात की जानकारी इंद्र को होने पर वे काफी क्रोधित हो गए।
इंद्र ने अपने अहंकार के कारण सम्पूर्ण ब्रिज में तूफ़ान एवं वर्षा करवा दी। हर तरफ त्राहिमाम होने पर श्रीकृष्ण ने ब्रिज के लोगो की रक्षा हेतु अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पहाड़ को उड़ाया और गाँव के लोग को इसके नीचे शरण दी।
गोवर्धन पूजन की विधि
- सबसे पहले तो पूजा करने वाले को सुबह नहाना होगा।
- इसके बाद सही मुहूर्त पर गाय के बोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत को बना लें।
- साथ में पशुधन मतलब गाय, बछड़े इत्यादि की प्रतिमा को बनाना है।
- इसके बाद धूप-दीपक जलाकर सही से पूजन करना है।
- श्रीकृष्ण की प्रतिमा को दूध से नहलाकर उसकी पूजा करें।
- फिर अन्नकूट का प्रसाद चढ़ावे।
गोवर्धन पूजन का महत्व
हिन्दू शास्त्रों में गोवेर्धन पूजन की महिमा का उल्लेख मिलता है। शास्त्रों में वर्णित कथाओ के मुताबिक़ यह पूजन श्रीकृष्ण से संबंध रखता है। श्रीकृष्ण ने ही सबसे पहले गोवर्धन पूजन की शुरुआत की थी। भगवान कृष्ण ने अपने हाथ की सबसे छोटी अँगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया था जिससे गोकुलवासियों और पशुओ को इंद्रदेवता के क्रोध से रक्षा मिली थी।

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गोवर्धन पूजन से होने वाले लाभ
आज के दिन गोवर्धन पर्वत को पूजने से भक्त को अपने मन की कामना पूर्ति होने का लाभ मिलता है और भक्त के घर पर पैसे एवं समृद्धि आती रहती है। परिजनों में प्रेम एवं ख़ुशी का माहौल रहता है और इसके लिए श्रीकृष्ण को भक्त 56 भोग भी चढ़ाते है। आज के दिन भक्त गाय के गोबर से एक गोवर्धन पहाड़ तैयार करते है जोकि गोवर्धन पर्वत होता है। इस पहाड़ को पुष्पों एवं रंगोली से सजाते है।