Bihar Reservation: बिहार विधानसभा में हाल ही में एक ऐतिहासिक पहल हुआ है, जिसके तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में आरक्षण की सीमा 75 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए एक बिल प्रस्तुत किया। इस नए प्रावधान के अनुसार, बिहार के सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में अब 75 प्रतिशत सीटें आरक्षित होंगी, जिससे ओपन कैटेगरी के लिए केवल 25 प्रतिशत सीटें शेष रह जाएंगी।
यह निर्णय जातिगत गणना के परिणामों के आधार पर लिया गया है, ताकि जातियों के अनुपात में नौकरियों और शिक्षा में समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके। 2019 में किए गए 103वें संविधान संशोधन के बाद, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था, सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अधिकतम 50 प्रतिशत कोटा की सीमा पहले ही पार हो चुकी थी।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बिल को विधानसभा में प्रस्तुत करने के बाद कहा कि यह विधेयक शीतकालीन सत्र के दौरान ही लाया जाएगा। इस प्रस्ताव को विपक्ष का भी समर्थन प्राप्त है। इस फैसले से राज्य में आरक्षण के पैमाने में महत्वपूर्ण बदलाव आएगा और समाज के विभिन्न वर्गों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में अधिक अवसर मिलेंगे।
राज्यपाल ने बिल को दी मंजूरी
बिहार के शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा को विस्तारित करते हुए, राज्यपाल ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बिल को मंजूरी प्रदान की है। इस नए संशोधन के तहत, बिहार में अब कुल 75% आरक्षण लागू हो गया है, जिसमें केंद्र द्वारा पहले से निर्धारित 10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) का आरक्षण भी शामिल है। यह निर्णय राज्यपाल द्वारा हाल ही में पारित आरक्षण संशोधन बिल को मंजूरी देने के बाद आया है। इस संशोधन के बाद, बिहार के शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अब आरक्षण की सीमा 65% से बढ़ाकर 75% कर दी गई है। यह निर्णय शीतकालीन सत्र के दौरान पारित किए गए बिल पर आधारित है, जिसे दोनों सदनों से मंजूरी मिल चुकी है।
ये रहे जातिजनगणना के आंकड़े
इस संशोधन का आधार राज्य में कराई गई जातिजनगणना के आंकड़े हैं, जिन्हें हाल ही में रिलीज किया गया था। इस गणना के अनुसार, राज्य में पिछड़ा वर्ग (OBC) की जनसंख्या 27.12%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की 36.01%, अनुसूचित जाति की 19.65% और अनुसूचित जनजाति की 1.68% है। वहीं, सामान्य वर्ग की जनसंख्या 15.52% बताई गई है।
बिहार सरकार का यह कदम राज्य के विभिन्न समुदायों की जनसंख्या के अनुपात में नौकरी और शिक्षा में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है। यह बिल न केवल आरक्षण की सीमा बढ़ाने पर केंद्रित है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि समाज के हर वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व मिले।
जाने इस बिल के मायने
बिहार सरकार के जातिजनगणना के आंकड़ों के प्रकाशन के बाद, राज्य में राजनीतिक वातावरण में गहमागहमी बढ़ गई है। इस आंकड़े के सामने आने के बाद, नीतीश कुमार की सरकार ने 75% आरक्षण का महत्वपूर्ण ऐलान किया है। इस नए आरक्षण संशोधन के मायने को समझने के लिए, हमें इसके राजनीतिक प्रभाव पर गौर करना होगा।
केंद्र की बीजेपी सरकार और विपक्षी कांग्रेस, दोनों ही इस आरक्षण संशोधन पर अपना रुख तय कर रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनावों पर पड़ने की संभावना है। बिहार के पिछड़े वर्गों में नीतीश कुमार की लोकप्रियता और समर्थन इस ‘आरक्षण कार्ड’ के माध्यम से और मजबूत हो सकती है। वहीं, बीजेपी के लिए यह आरक्षण बिल चुनावी मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
इस आरक्षण संशोधन का सामाजिक और राजनीतिक माहौल पर गहरा प्रभाव होगा। जहां एक तरफ यह बिहार के पिछड़े वर्गों के लिए एक बड़ा समर्थन हो सकता है, वहीं दूसरी तरफ यह राजनीतिक दलों के लिए एक चुनौती भी है। नीतीश कुमार का यह कदम उनके राजनीतिक कौशल और सामाजिक समर्थन को दर्शाता है। अंततः, इसका असर आगामी चुनावों में बिहार के राजनीतिक दृश्य पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा।