दिल्ली में कृत्रिम बारिश करवाने की तैयारी शुरू, आईआईटी कानपुर से मीटिंग हुई

बहुत ही घटक स्तर पर आ चुके वायु प्रदूषण से राजधानी के लोगो को निजात दिलाने के उद्देश्य से सरकार 20 और 21 नवंबर को कृत्रिम बारिश करने की तैयारी कर रही है। वैसे ऐसा (artificial rain) उस समय ही हो सकेगा जब ट्रायल लेने पर आकाश में 40 फ़ीसदी बादल होंगे। वैसे वर्तमान दिनों में दिल्ली में बादल होने के अनुमान है।

इन्ही बादलो के होने से दो दिनों को बारिश के ट्रायल के रूप में चुना गया है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय एवं अधिकारीयों ने आईआईटी, कानपुर के साथ 8 नवंबर के दिन एक बैठक भी की है। इसके बाद उन्होंने (Gopal Rai) ने जानकारी दी है कि इस महीने के शुरू होने से ही दिल्ली में हवाओ की गति बहुत कम रही है। इस वक्त सर्वाधिक कठिन पाबंदी ग्रेप-4 कार्यान्वित है।

कृत्रिम बारिश को लेकर पहली मीटिंग 12 सितम्बर में हुई थी तो उस समय कहा गया था कि उनके द्वारा जुलाई में की गई कृत्रिम वर्षा का प्रस्ताव दिल्ली की सर्दियों दे। इसी बात को कल की दूसरी बैठक में बढ़ाया गया है। इस बारिश में थोड़े बादलो की जरूरत है और जानकारी के अनुसार 20-21 नवंबर में राजधानी में थोड़े बादल होंगे।

एलजी ने भी बारिश को लेकर मीटिंग की

9 तारीख को इसका प्रपोजल मिलने के बाद इसको सुप्रीम कोर्ट में रखा जायेगा और यहाँ से स्वीकृति के बाद आगे विभिन्न अनुमति मिल जाएगी। इन स्वीकृतियों के लिए 20 तारीख तक का टाइम पर्याप्त है। दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का प्रथम पायलट प्रोजेक्ट होगा। इस बारिश को लेकर एलजी वीके सक्सेना की CII एवं IIT कानपुर से बैठके हो चुकी है जिसमे क्लाउड सीडिंग एवं कृत्रिम वर्षा पर वार्ता हुई है।

कृत्रिम वर्षा क्या होती है?

कृत्रिम वर्षा की तकनीक में रसायनिक अवयव जैसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस एवं साधारण नमक को बादलो में छोड़ते है जोकि ‘क्लाउड सीडिंग’ कहलाता है। विज्ञानियों के मुताबिक़ इस काम में प्राकृतिक बादलो की उपस्थिति अनिवार्य है। इस महीने में दिल्ली के आसमान में कम ही बादल होते है तो इस प्रक्रिया में परेशानी हो रही है।

कृत्रिम बारिश के विभिन्न चरण

  • सबसे पहले वार्ड वायुयान के द्वारा सिल्वर आयोडाइड वाले उच्च दाब वाले मिश्रण को छिड़केंगे। सम्बंधित क्षेत्र में वायुयान को वायु के विपरीत दिशा में उड़ाया जायेगा।
  • उपर्युक्त बादल के संपर्क में आते ही बर्नर एक्टिव कर देंगे। ऐसे में पानी शून्य डिग्री तक ठण्डा होने से वायु में स्थिति पानी के कण जमने लगते है।
  • वायु में कण इस प्रकार से ही निर्मित होते है जैसे की वे प्राकृतिक रूप से ही बने हो। इस काम में बैलून, विस्फोटक राकेट को भी इस्तेमाल में लाते है।
  • इन प्रक्रियाओ के बाद ही वर्षा हो पाती है।

प्रदूषण कम होने के प्रमाण नहीं है

कृत्रिम वर्षा को करने में एक समय में 10 से 15 लाख रुपयों तक का खर्चा हो जाता है किन्तु इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले है कि इस वर्षा से वायु प्रदूषण में कमी होगी। इस काम को अभी तक 53 देशों में जरूर किया गया है। कानपुर में इस प्रकार के परीक्षण हवाई यानो की मदद से हो चुके है।

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कृत्रिम बारिश कराने की वजह

राष्ट्रीय राजधानी में बीते कुछ दिनों से वायु प्रदूषण का स्तर काफी घातक हो चुका है। इस समय तक प्रदूषण की रोकथाम के सभी उपाय निष्फल हो चुके है। ग्रैप द्वारा प्रस्तावक पाबंदियों को भी सही प्रकार से लागु नहीं किया जा पा रहा है। स्मॉग गन, वॉटर स्प्रिंकलर, वॉटर टैंक आदि के इस्तेमाल से पानी छिड़कने से कम टाइम एवं क्षेत्र पर ही नियंत्रण हो पा रहा है।

हवा की गति कम होने के कारण इसमें मौजूद मिटटी के छोटे कणो के असर को कम करने में काफी काम करना पड़ रहा है। जानकारों के अनुसार बारिश के हो जाने तक यह प्रदूषण कम नहीं होगा।

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