शराब घोटाले में अरेस्ट किये गए आप पार्टी के संजय सिंह (Sanjay Singh) ने अपनी पार्टी और प्रमुख नेता अरविन्द केजरीवाल के सामने चुनौतियाँ बढ़ा दी है। अब सरकारी गवाह के सामने आने के बाद इस मामले में आप पार्टी की मुसीबत हो चुकी है। पहले ही मनीष सिसोदिया के जेल में होने के बाद उनका काम आतिशी मार्लेना एवं सौरभ भारद्वाज के ऊपर है।
तब से पार्टी की राजनैतिक क्रियाकलापों को संजय सिंह ही सम्हाल रहे थे और वे ही पार्टी के लिए सड़क से संसद तक संघर्ष करने में जुटे थे। पार्टी के लगभग सभी राजनैतिक निर्णयों में उनकी अहम भूमिका रहती थी। वे देश में पार्टी का कार्यक्षेत्र बढ़ाने के साथ ही विरोधी पार्टियों के साथ सामजस्य बिठाने के काम करते थे।
इन सभी बातो को जानने के बाद संजय सिंह का आप पार्टी में योगदान अच्छे से जाना जा सकता है। केजरीवाल द्वारा आम आदमी पार्टी के बनाने के बाद ही संजय सिंह और मनीष सिसोदिया को उनके दोनों हाथ तक कहा जाता रहा है। पार्टी की तरह से आगे के काम को मनीष सम्हालते थे और पीछे की सभी जिम्मेदारी अधिकांश संजय सिंह देखा करते थे।
केजरीवाल पर भी दबाव आने लगा
हालाँकि विरोधी पार्टी के नेता इस प्रकार की कार्यवाही को केंद्र सरकार की राजनीति करार दे रहे है किन्तु समस्या यह है कि केजरीवाल की पारित के नेताओं पर बार-बार भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे है। केजरीवाल पार्टी के बनने से पहले ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई कर रहे है।
सबसे पहले उनके स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अरेस्ट हुए और अभी बेल लिए हुए है। शराब नीति में गड़बड़ करने के आरोप में CBI ने भी मनीष सिसोदिया को अरेस्ट किया है किन्तु फिर उनको ईडी ने पकड़ा था। अब संजय सिंह भी शराब घोटाले में अरेस्ट हो चुके है।
अभी अपनी शादी में काफी खर्च करने वाले राघव चड्डा भी जाँच एजेंसियों की रडार में आने लगे है। पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल को भी अपने सरकारी गृह के काम में CBI की जाँच झेलनी पड़ रही है। केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पिछली सभी कार्यवाहियों को गैर-क़ानूनी बताते है किन्तु वो कोर्ट में कमजोर पड़ने लगते है।
विरोधी पार्टियों से कौन डील करेगा
अभी तक आप पार्टी और विरोधी दलों के बीच में संजय सिंह मध्यस्थ की अच्छी भूमिका निभा रहे थे। सजय ने कांग्रेस के साथ टेंशन कम करने से लेकर मल्लिकार्जुन खरगे की बैठक तक में भाग लिया है। पंजाब में कामयाबी के लिए भी वे आगे रहे है। गुजरात विधानसभा के इलेक्शन में भी संजय में अपनी भागदौड़ से 5 सीटे दिलवाई है।
अब आप पार्टी में कोई भी ऐसा सदस्य नहीं बचा है जोकि संजय सिंह जैसी भूमिका निभाने के लायक हो। केजरीवाल पार्टी के मुख्य चेहरे के रूप में तो खड़े हो सकते है किन्तु विरोधी दलों के साथ सामजस्य बैठाने में वे भी असमर्थ ही रहेंगे।
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पार्टी के विस्तार में मुश्किल होगी
पार्टी के सामने जब राज्यसभा में अपने सदस्य को भेजने का सवाल आया तो केजरीवाल ने सभी के बीच से संजय सिंह हो चुना था। इसके बाद से ही केजरीवाल को लेकर कुमार विश्वास में थोड़ी नाराजगी जरूर आ गई और उस समय आसुतोष ने तो पार्टी को ही छोड़ने का फैसला लिया।
संजय सिंह पर केजरीवाल का ये भरोसा कभी भी गलत साबित नहीं हुआ और वे पार्टी के लिए विस्तार का काम करते रहे। पार्टी ने साल 2017 में पंजाब का रुख किया तो संजय को ही प्रभारी का काम मिला। पार्टी की सरकार तो न बन पाई किन्तु संजय ने पार्टी को मजबूत विपक्षी जरूर बना दिया।