ADHD: बच्चों के काम को प्रभावित करने वाला मानसिक विकार, लक्षणों को जानकर उपचार संभव

कुछ बच्चे में ये देखा जाता है कि वे अधिक देर तक एक ही स्थान पर बैठ नहीं पाते है अथवा दिए गए कार्य पर ज्यादा टाइम तक अपना ध्यान नहीं लगा पाते है। जिन भी बच्चो में इस प्रकार के लक्षण पाए जाते हो वो निश्चित रूप से ADHD नाम की मानसिक समस्या से पीड़ित होते है।

इस प्रकार के संकेत दिखने पर पेरेंट्स को बच्चे को जल्दी से उपचार के लिए ले जाना चाहिए। इस बात का सम्बन्ध एक प्रकार के दिमागी डिसऑर्डर से है। बच्चे में ये लक्षण आने पर पेरेंट्स जल्दी उसका उपचार शुरू कर सकते है। आमतौर पर इस समस्या के लक्षण 2 से 3 वर्ष के बच्चे में दिख जाते है।

किसी भी बच्चे की लाइफ ADHD डिसऑर्डर के साथ मुश्किल हो जाती है किन्तु समय रहते इसके उपचार पर ध्यान न दिया गया तो यह खतरनाक रूप भी ले सकता है। ऐसे बच्चे के बड़े होने पर ये समस्या बड़ा रूप ले लेगी।

एडीएचडी (ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार)

एडीएचडी को विस्तृत रूप से अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) कहत यह जोकि एक प्रकार का न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर कहलाता है। इस समस्या का आरम्भ बच्चे के बालपन से होकर बड़े होने तक चलता है। ये एक अधिक समय तक चलने वाले समस्या भी है।

इस प्रकार की समस्या (ADHD) से पीड़ित बच्चे को एक ही बात पर ध्यान एकाग्रचित करने एवं ज्यादा टाइम तक एक ही स्थान पर बैठे रहने में परेशानी होती है। ऐसे बच्चे अपने व्यवहार में भी नियंत्रण नहीं रख पाते है और कुछ सोचे बिना ही गलत कर बैठते है। इस डिसऑर्डर का कोई उपचार भी नहीं है।

किन्तु इस समस्या के लक्षण पहचानने के बाद उन पर ध्यान देकर नियंत्रण में ला सकते है। खास बात ये है कि ये समस्या लड़को में अधिक बल्कि लड़कियों में कम पाई जाती है।

एडीएचडी के लक्षण

  • शीघ्र ध्यान भंग होना।
  • अपने में खोये से रहना।
  • दिए निर्देश न मान पाना।
  • हर कार्य में लाहपरवाही बरतना।
  • सामान भूलना एवं खोते रहना।
  • अधिक टाइम लेने वाले कार्यो को न कर पाना।
  • एक ही स्थान पर अधिक टाइम तक न बैठ पाना या मूमेंट करते रहना।
  • अपने सामान को व्यवस्थित करने में दिक्कत होना।
  • जरुरत से अधिक बोलना।
  • किसी काम में अपनी बारी आने की प्रतीक्षा न करना।
  • दूसरो की बात बीच में ही काटना।
  • हर समय इधर-उधर भागना।

एडीएचडी के तीन टाइप

हाइपरएक्टिव-इंपल्सिव- इस प्रकार के डिसऑर्डर में बच्चा एक ही स्थान पर शांति के साथ नहीं बैठता है। ये उत्तेजना पूर्ण बर्ताव है। ऐसे बच्चे अपनी बारी की प्रतीक्षा भी नहीं करते है और अन्य लोगो की बात बीच में काटकर बोलते है।

इनअटेंटिव – ऐसे में बच्चे को अपने में खोया-खोया पाया जाता है और इनको अपना काम करने में भी समस्या होती है। ऐसे बच्चे लाहपरवाही की वजह से अपने काम में गलती भी करते है। ये अपने सामानो को भी खोते रहते है और कही जा रही बात पर ध्यान नहीं देते है।

कंबाइन्ड – इस डिसऑर्डर में ऊपर की दोनों समस्या के मिश्रित लक्षण मिलते है किन्तु यह प्रकार कम ही बार मिलता है।

एडीएचडी का इलाज़

सबसे पहले तो माता-पिता अपने बच्चे में इस डिसऑर्डर के लक्षणों की बारीकी से जाँच करें और इसके लिए एक चेक-लिस्ट भी तैयार कर सकते है। बच्चे में लक्षण होने पर तुरंत अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करें।

बच्चे के निरीक्षण के बाद आपके डॉक्टर अथवा कॉउंसलर ‘एडीएचडी’ के एक्सपर्ट के पास भेजेंगे। समस्या के इलाज़ के अनुसार किसी सायकोलॉजिस्ट अथवा न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करने का परामर्श मिल सकता है।

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एडीएचडी होने के कारण

  • किसी निकट के सम्बन्धी (माँ-बाप, भाई-बहन) से इस प्रकार के मानसिक विकार आ सकते है।
  • किन्ही पर्यावरण के जहरीले तत्वों जैसे – पुरानी बिल्डिंग के पेण्ट एवं पाइप के लेड से संपर्क होना।
  • माँ के प्रेग्नेंसी के काल में अल्कोहल एवं स्मोकिंग करना।
  • प्रेग्नेंसी ने दौरान पर्यावरण के जहरीले तत्वों जैसे – पोलीक्लोरीन वाले वायफनील (PCB) से संपर्क हो जाना।
  • समयपूर्व डिलीवरी हो जाना।

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