विश्व की सबसे ऊँची शिव प्रतिमा ‘विश्वास स्वरूपम्’, जानें क्या है खास

शिव प्रतिमा (विश्वास स्वरूपम्) की ऊँचाई बहुत ज्यादा है इस कारण से इसकी कुल ऊँचाई को तय करने के लिए 4 लिफ्टों का इस्तेमाल करना होगा।

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Reported by Sheetal

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विश्व की सबसे ऊँची शिव प्रतिमा ‘विश्वास स्वरूपम्: इस प्रतिमा का निर्माण अजमेर (राजस्थान) सिक्सलेन पर नाथद्वारा में गणेश टेकरी पर संत कृपा सनातन संस्थान के ट्रस्टी श्री मदन पालीवाल ने करवाया है। इस प्रतिमा की ऊंचाई का अंदाज़ा इस बात से ही लगा सकते है कि अजमेर रोड पर आगे पहुँचने पर करीबन 20 किमी दूर से ही प्रतिमा दिखने लगती है।

लगभग 10 साल के निर्माण कार्य के बाद 369 फ़ीट ऊँची शिवजी की प्रतिमा का निर्माण हो सका है। ये प्रतिमा इतनी मजबूत है कि 250 किमी से अधिक की गति पर चलने वाली हवाओं और अतिवृष्टि भी इसको क्षति नहीं पहुँचा सकती है।

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विश्व की सबसे ऊँची शिव प्रतिमा ‘विश्वास स्वरूपम्’, का निर्माण विदेशी कंपनी ने किया

विश्व की सबसे ऊँची शिव प्रतिमा ‘विश्वास स्वरूपम् का निर्माण करने वाली ऑस्ट्रेलियन और अमेरिकन कंपनी का दावा है कि प्रतिमा 2500 सालों तक इसी प्रकार से खड़ी रहने वाली है और बाहर से मजबूत होने के साथ ही इसके अंदर के क्षेत्रफल में एक छोटा-मोटा गाँव बह बस सकता है।

ये मूर्ति अंदर से इतनी बड़ी है कि इसके अंदर बने हॉल में एक समय में करीबन 10 हजार लोग आ सकते है। यह मूर्ति इतनी बड़ी है कि इसको अंदर से पूरी तरह देखने के लिए 4 घंटों का समय लगेगा।

शिव प्रतिमा के कन्धे तक पहुँचने के लिए 4 लिफ्ट

शिव प्रतिमा (विश्वास स्वरूपम्) की ऊँचाई बहुत ज्यादा है इस कारण से इसकी कुल ऊँचाई को तय करने के लिए 4 लिफ्टों का इस्तेमाल करना होगा। यहाँ पर मूर्ति का दर्शन करने के लिए आने वाले लोगों को 20 फ़ीट से 351 फ़ीट तक का सफर लिफ्ट से करवाने की व्यवस्था है।

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लिफ्ट के माध्यम से लोग 270 फ़ीट की ऊँचाई तक जाकर शिवजी के बाएं कंधे में स्थित त्रिशूल को देख सकते है। यहाँ पर से मूर्ति के परिसर ‘तद पदम् उपवन’ से गणेश टेकरी में मौजूद शिव प्रतिमा को देख सकते है। एक शीशे से बना पुल है जिससे होकर गुजरना हर किसी के बस की बात नहीं।

प्रतिमा से जुडी मान्यताएँ

इस प्रतिमा को लेकर आम मान्यता तो यहाँ तक है कि जिस समय भगवान शिवजी श्रीनाथजी को नाथद्वारा में मिलने गए थे तो इसी टेकरी पर विराजमान हुए थे। इस कारण से ही इसको गणेश टेकरी का नाम दिया गया है।

कहानी के अनुसार यहाँ पर भगवान् शिव ने प्रस्थान के बाद अपना कमंडल और डमरू छोड़ दिया था। इस कारण से प्रतिमा में भगवान शिव का त्रिशूल भी है। जिस स्थान पर डमरू और कमण्डल छूटा था वहाँ पर अलग से प्रतिमा का निर्माण होना है।

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